घायल होवे तन-मन शर्म हया से तेरे,
पवन की बहती बयार लागे मोहिनी!
कोयल सी बोली बोल चमक बिखेर चली,
दिल की ये बजती गिटार लागे मोहिनी!
नज़र ही नज़र में नज़र चुरा के चली,
रस में समाई रसधार लागे मोहिनी!
लचके कमर जैसे नांव डोले नदी बीच,
चाल अंगड़ाई जानमार लागे मोहिनी!
रूप रंग सादगी श्रृंगार सिरहन करें ,
अप्सरा या कोई अवतार लागे मोहिनी!
स्वरचित मौलिक, सर्वाधिकार सुरक्षित.
✍️चंद्रगुप्त नाथ तिवारी
सुंदरपुर बरजा आरा (भोजपुर) बिहार
Mohammed urooj khan
12-Feb-2024 11:47 PM
👌🏾👌🏾👌🏾
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Ansari prins
11-Feb-2024 08:11 AM
सुन्दर और बेहतरीन अभिव्यक्ति
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Gunjan Kamal
10-Feb-2024 11:17 PM
👌👏
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